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जैसे ही मॉ को पुकारा तो, फिर वैसा ही हुआ..... चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है देवी चंडी का मंदिर......

जैसे ही मॉ को पुकारा तो, फिर वैसा ही हुआ..... चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है देवी चंडी का मंदिर
चिचोली मीडिया:- (आनंद रामदास राठौर- चिचोली ) ....
भारत  चमत्कारों का देश है। बात जब देवी शक्ति के चमत्कारों की हो तो फिर कहना ही क्या है। बैतूल जिले की हरी-भरी वादियों के बीच बसा है मेरा छोटा सा नगर चिचोली। वैसे तो मुझे यहां की मिट्टी के एक-एक कण से प्यार है, लेकिन तबसे अधिक कोई चीज अगर मुझे यहां लुभाती है, तो यह है यहां का चंडी माता का मंदिर। नगर से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर सुरम्य वादियों में बने इस मंदिर में देवी की प्राचीन मूर्तियों को देखकर आत्मा को मिलने वाल संतोष की कल्पना भी नहीं की जा सकती। बचपन से ही में मां चंडी के अनेक चमत्कारों के चारे में सुनता आ रहा हूं। लेकिन "हाथ कंगन को आरसी क्या की तर्ज" पर इस मंदिर में बैठकर मां चण्डी का चमत्कार लोग अपनी आंखों से देखते और कानों से सुनते हैं, जो विज्ञान के लिए आज भी एक पहेली बना हुआ है।
बुजुर्गों के अनुसार इस इलाके मे कभी गोंड राजा इल का राज था। देची चंडी उनकी आराध्य थी। राजा न्यायप्रिय और प्रजापालक ये। राजा इल के महल के अवशेष आज भी कायम हैं। कहते हैं कि इस महल से देवी के मंदिर तक राजा पूजा करने के लिए एक सुरंग से होकर आते थे। मंदिर के पास ही राजा ने दो कमरों का निर्माण कराया था। बताते हैं कि जब कमरे बनकर तैयार हुए तो राजा ने देवी की जयकार करते हुए पहली बार इन कमरों में प्रवेश किया तो वे आश्चर्य से भर उठे, क्योंकि उनकी सामान्य आवाज में लगाया गया जयकारा इन कमरों के अंदर इतनी तेजी से गूंजा, मानो आसमान फट पड़ा हो। राजा चौंक गए। उन्होंने फिर एक बार मां को पुकारा तो फिर वैसा ही हुआ। राजा इल देवी के चरणों में नतमस्तक हो गए। राजा का लोहे सा मजबूत किला समय के साथ उह गया, लेकिन मंदिर के पास बने ये दो चमत्कारी कमरे आज भी उसी हालत में मौजूद हैं। जो शान से आज भी विज्ञान को चुनौती दे २हे है। इनका राज क्या है।यह कोई नही जान पाया! सैकड़ों लोग यहां पहुंचकर देवी के इस चमत्कार को आज भी अपनी आंखों के सामने देखते हैं। 
इन कमरों में देवी का जयकारा जितनी तेज आवाज मे लगाओ वह उतनी तेजी से गुजता है .! राजा इल ने दुधिया गढ़ से देवी मंदिर जाने के लिए एक सुरंग भी बनाई थी! जिसके माध्यम से राजा देवी चंडी की पूजा करने के लिए यहाँ आते थे ।
समय के साथ राजा इल अपने शत्रुओ के हाथों पराजित होकर उन्हीं सुरंगों में फंसकर मारे गए, जो उन्होंने दुधियागढ़ किले से मंदिर तक आने-जाने के लिए बनाई थी। तब से लेकर लंबे समय तक देवी चंडी का यह मंदिर वीरान पड़ा रहा।समय ने एक बार फिर करवट ली और सालो बीतने के बाद पास के गांव सिंगारचौड़ी के लोगों ने मिलकर निर्णय किया कि देवी मां की मूर्ति को यहां से विस्थापित करके उनके गांव में स्थापित कर दिया जाए। ताकि ,देवी जी की अच्छी तरह से सेवा की जा सकेर नियत समय पर गांव के दो दर्जन के करीब लोग बैलगाड़ी लेकर देवी की मूर्ति को उठाकर गांव लाने के लिए यहां पहुंचे। उन्होंने देवी जी की मूर्ति को उठाकर जैसे ही बैलगाड़ी में रखा कि सबके सब लोगों पर अचानक ही आफत का ऐसा पहाड़ टूटा कि वे सब घबरा गए।
लोगों के साथ गए बुर्जगों को समझते देर नहीं लगी कि यह देवी का प्रकोप है, जो मूर्ति को अपने स्थान से हटाए जाने पर नाराज हैं। तत्काल मूर्ति को वापस पूर्व स्थान पर रख दिया गया, तो उन लोगों पर संकट जिस तरह से अचानक आया या वैसे ही टल भी गया। गांव के लोगों ने देवी के चमत्कारों के बारे में केवल सुन रखा था, जब उस रोज अपनी आंखों से देखा तो लोगों को देवी चंडी के चमत्कारिक स्वरूप पर विश्वास हो गया और उसी स्थान पर उनकी स्थापना कर विवि विधान से पूजा-अर्चना की गई। तब से प्रति रविवार और बुधवार यहां पर देवी के मनाने वालो का जन सैलाब उमड़ता है ! यहाँ पर पहुचने वाले प्रत्येक भक्तो की मनोकामना को देवी चंडी पूर्ण करती है! यही सबसे बड़ा चमत्कार है!

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