चमत्कारो के लिए प्रसिद्ध है ! मॉ चंडी का दरबार,उमड़ता है भक्तो का जन सैलाब chicholi media
जैसे ही माँ को पुकारा , तो वैसा ही हुआ……….
चिचोली मीडिया डॉट काम :- _ भारतीय दर्शन में शक्ति को दिव्य और अत्यंत उदात्त माना गया है ! “शक्ति ही विश्व का “सृजन, संचालन , और संहार ” करती है ! शक्ति के 24 रूप 7 मात्रिकाएँ ,9 दुर्गा रुप और 10 महाविद्या है ! देवी के नौ रूपो को देवी भक्त नवरात्र के दौरान विशेष पूजन अर्चन के साथ पूर्ण आस्था , शिद्धत से पूजते है ! चैत्र नवरात्र के दौरान देवी भक्तो का शक्ति केन्द्रो पर पहुचकर दर्शन करने का सिलसिला जारी रहता है ! _चिचोली तहसील के प्रसिद्ध देवी स्थल “चंडी दरबार ” मे भी देवी भक्तो का रोजाना हुजूम उमड़ रहा है ! चिचोली नगर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर सुरम्य प्राकृतिक स्थान में बने चंडी मंदिर में देवी की प्राचीन मूर्तियों को देखकर आत्मा को मिलने वाले संतोष की कल्पना नहीं की जा सकती ! मां चंडी के अनेक चमत्कारों की किदवंतियो का वृतांत इस क्षेत्र के लोगो से सहज ही अक्सर सुनने को मिल जाती है ! लेकिन फिर भी ” *हाथ कंगन को आरसी क्या* ” की तर्ज पर इस मंदिर में बैठकर मां चंडी का चमत्कार लोग अपनी आंखों से देखते हैं ,और कानों से सुनते हैं ! जो एक अबुझ पहली बनी हुई है ।
*मंदिर से जुड़ी किंदवंती* _ बुजुर्गों के बताए अनुसार इस इलाके में कभी गोंड राजा ईल का राज हुआ करता था ! देवी चंडी उनकी आराध्य कुल देवी थी ! राजा न्यायप्रिय और प्रजा पालक थे ! राजा ईल के महल के अवशेष आज भी यहां कायम है! जिसे दुधिया गढ़ के नाम से जाना जाता है ! कहते हैं, कि दूधिया गढ़ महल से देवी के मंदिर तक राजा पूजा करने के लिए एक सुरंग के माध्यम से जाते थे ! मंदिर के पास ही राजा ने दो कमरों का निर्माण भी कराया था ! जिन्हे देवल कहा जाता है, बताते हैं कि जब यह कमरे बनकर तैयार हुए तो राजा ईल ने देवी की जय जयकार करते हुए पहली बार प्रवेश किया ! तो वे आश्चर्य से भर उठे ! क्योंकि उनकी सामान्य में आवाज में लगाया गया जयकारा इन दो कमरों में इतनी तेजी से गुजा कि, मानो आसमान फट पड़ा हो ! राजा चौक गए ,उन्होंने फिर एक बार मां को पुकारा तो फिर वैसा ही हुआ ! राजा देवी के चरणों में नतमस्तक हो गए !राजा ईल का किला समय के साथ ढह गया ! लेकिन मंदिर के पास बने दो चमत्कारी कमरे आज भी उसी हालत में मौजूद है! सैकड़ों लोग यहां पहुंचकर देवी के इस चमत्कार को आज भी अपनी आंखों के सामने देखते हैं ,और कानो से सुनते है ! इन कमरों में देवी का जयकारा जितना तेज आवाज में लगाओ आवाज उससे कई गुना गुंजकर लौटती है ! जो किसी चमत्कार से कम नहीं ! इसका क्या रहस्य है ,यह कोई नहीं जानता….. समय के साथ राजा अपने शत्रुओ से पराजित होकर उन्हीं सुरंगों में फंसकर मारे गए! जो उन्होंने दूधियां गढ़ किले से मंदिर तक आने-जाने के लिए बनवाई थी ! तब से लगाकर लंबे समय तक देवी चंडी का यह स्थान विरान पड़ा रहा ! आज से वर्षो पहले पास के गांव सिंगार चोड़ी के लोगों ने जब यह स्थान देखा और इसके बारे मे जाना तो उन्होने मिलकर निर्णय लिया ,कि देवी को यहां से ले जाकर उनके गांव में स्थापित कर दिया जाए! ताकि देवी की अच्छी तरह से सेवा हो सके ,नियत समय पर गांव के दो दर्जन के करीब लोग बैलगाड़ी लेकर देवी की मूर्ति उठाकर ले जाने के लिए यहां पहुंचे ! उन्होने जैसे ही देवी चंडी की मूर्ति को उठाकर बैल गाड़ी में रखा ! अचानक सब लोगों पर आफत का ऐसा पहाड़ टूटा कि सब घबरा गए! लोगों के साथ गए बुजुर्गों को समझते देर नहीं लगी कि यह देवी का प्रकोप है ,जो मूर्ति को अपने स्थान से हटाए जाने पर नाराज हैं, तत्काल मुक्ति को वापस पूर्व स्थान पर रख दिया गया ! तो लोगों पर जिस तरह से संकट आया था वैसे ही टल गया ! गांव के लोगो ने देवी के चमत्कारों के बारे में केवल सुन रखा था लेकिन जब उस रोज अपनी आंखों से लोगों ने देवी के चमत्कार को देखा तो उसी स्थान पर उनकी स्थापना कर विधि-विधान से पूजा-अर्चना प्रराम्भ कर दी ! तब से प्रति रविवार और बुधवार को यहां भक्तों की भीड़ जुटती है ! चंडी देवी का यह स्थान असंख्य देवी भक्तों के लिए श्रद्धा का केंद्र है जहां माँ को मनाने वाले देवी के अनुयायी अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं ! और मनोकामना पूर्ण होने पर इस स्थान पर देवी को प्रसाद स्वरूप मुर्गे और बकरे की बलि देकर पूजन करते है ! प्रति रविवार और बुधवार को चंडी देवी के मंदिर में जन आस्था का सैलाब उमड़ता है ।
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