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200 वर्ष पूर्व गांव वालों ने साधु बाबा को दिया था वचन, तब से चूड़ियां में नहीं बिकता दूध दही मही

 200 वर्ष पूर्व गांव वालों ने साधु बाबा को दिया था वचन, तब से चूड़ियां में नहीं बिकता दूध दही मही 


चिचोली मीडीया डॉट कॉम :- ( रितीक राठौर-):बैतूल जिले के अंतर्गत आने वाली चिचोली तहसील के एक छोटे से गांव में 200 वर्ष बीत जाने के बाद भी एक संत को दिए गए वचन का पालन आज भी गांव वाले कर रहे हैं। जिसके चलते आज भी इस गांव में दूध दही नहीं बिकता और ना ही बेचने के लिए कोई दुकान या डेयरी इस गांव में मौजूद है,

18 वीं शताब्दी में चिचोली तहसील के चूड़िया ग्राम में जन्मे एक संत के कहे अनुसार आज भी गांव वाले दूध दही मही का व्यवसाय नहीं करते बल्कि लोगों में निशुल्क बांट देते हैं यह सिलसिला लगभग 200 वर्ष से जारी है! 200 वर्ष पूर्व चूड़िया ग्राम में जन्म से ही चमत्कारिक संत चिधिया साधु बाबा के चमत्कारों की दास्तान बुजुर्ग सहज ही बता देते हैं!
वृतांत है कि संत सिंधिया साधु बाबा ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में गांव वालों से एक वचन लिया था कि इस गांव में कोई भी व्यक्ति दूध दही मही का व्यवसाय नहीं करेगा बल्कि इसे निशुल्क ही वितरित कर देगा!
आज भले ही दूध का रेट ₹50 लीटर हो गया हो और प्रत्येक गांव में दूध डेरी खुल गई हो लेकिन इस गांव में आज भी दूध नहीं बेचा जाता और ना ही यहां पर दूध डेयरी की स्थापना की गई है!
आज हम चिचोली मीडिया के माध्यम से चिचोली तहसील के प्रसिद्ध, चमत्कारिक संत चिंधिया साधु बाबा के जीवन के बारे में अवगत कराने जा रहे हैं!
वैसे तो चिचोली तहसील संतो की कर्मभूमि रही है चिचोली तहसील के प्रसिद्ध संत श्री गुरु साहब बाबा से लगाकर तपश्री बाबा तक के चमत्कारों का वृतांत इस तहसील के लोगों के जेहन में आज भी कैद है ! लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि चूड़ियां संत चिधिया साधु बाबा भी अपने जीवन काल में चमत्कारों के लिए और लोगों की मदद करने के लिए प्रसिद्ध थे ! आज भी बाबा के दरबार में कार्तिक पूर्णिमा पर विशाल मेला लगता है! जिसकी शुरुआत कभी जीवित रहते हुए संत साधु बाबा ने की थी। आज भी चूड़ियां के निकट खेत में संत साधु बाबा की मणि है। जहां पर कभी संत साधु बाबा अपने पशुओं को बांधकर अपने गुरु सिंगाजी महाराज की पूजा में लीन हो जाते थे| बुजुर्ग बताते हैं कि इस स्थान पर कभी खेत हुआ करता था। जिसमें संत साधु बाबा की झोपड़ी हुआ करती थी। इस झोपड़ी के निकट ही पशुओं को बांधने के लिए एक कोठरी बनाई गई थी। बाबा जन्मजात चमत्कारिक संत थे ! जो जंगल में पशुओं को चराने के लिए जाया करते थे ! जंगल में पशुओं को चलाते वक्त साथि चरवाहों की भूख मिटाने के लिए मिट्टी उठाकर गुड़ बनाना जैसे चमत्कार बाबा की दिनचर्या में शामिल थे। मूलतः गवली जाति से संबंध रखने वाले साधु बाबा
 के बारे में उनके परिजनो ने बताया हैं कि,
अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान एक बार क्षेत्र में एक अंग्रेजी दरोगा अपना सामान लेकर मजदूरों के साथ चूड़ियां की तरफ आ रहा था! इसी दरमियान रास्ते में साधु बाबा को देखकर दरोगा ने अपनी हुकूमत चलाते हुए संत साधु बाबा से कहा कि, यह सामान की गठरी अपने सर पर रखो और मेरे साथ पीछे-पीछे चलो साधु बाबा ने गठरी को सर पर रखा और दरोगा के पीछे चलने लगे जब दरोगा ने अचानक ही साधु बाबा को पलट कर देखा तो दरोगा के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा, वृतांत है कि साधु बाबा ने जिस गठरी को अपने सर पर रखा था ! वह सर से 2 फीट ऊपर हवा में झूल रही थी। और साधु बाबा पैदल अपने मस्त अंदाज में मार्ग पर चल रहे थे, यह दृश्य देखकर अंग्रेजी दरोगा बाबा के चरणों में नतमस्तक हो गया। और अपने किए कराए के लिए माफी मांगी तब से बाबा के जीवंत काल तक दरोगा बाबा की मणि पर पहुंचकर बाबा के अनुयायियों में शामिल रहा!
इससे भी आगे बाबा के चमत्कारों का एक वृतांत है चूड़ियां निवासी ठाकुर नरेंद्र सिंह बताते हैं कि बाबा की मणि पर उनके वंशजों के द्वारा पगड़ी पहुंचाई जाती थी! यह पगड़ी बाबा के आदेश से ही मणि के गुंबद के शिखर लाल निशान के रूप में  प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर चढ़ाई जाती २ही है । उनके चौथी पीढ़ी के वंशज शिव शंकर पटेल को संत साधु बाबा ने गोद लिया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है! बाबा के कहे अनुसार लाल निशान को पगड़ी के रूप में कहा जाता है! जो पटेल निवास से प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर मंदिर के शिखर पर चलाई जाती थी। 

ठाकुर नरेंद्र सिंह ने बताया कि उनके बुजुर्गों के बताए अनुसार जिस स्थान पर बाबा की मणि है और बाबा जहां पर रहते थे वृतांत है कि शाम के समय जब बाबा जंगलों से अपने मवेशियों को लाकर एक ही स्थान पर बांध देते थे और इसके बाद बाबा अचानक ही स्थान से गायब हो जाते थे! बाबा कहां जाते थे यह किसी को जब पता नही चला तो कुछ दिन बाद सिंगाजी दरबार से लौटे कुछ श्रद्धालुओं ने बताया कि, प्रतिदिन साधु बाबा शाम के समय सिंगाजी दरबार में पहुंचकर संत सिंगाजी की का पूजन करते हैं! बाबा अपने आध्यात्मिक चमत्कारों के चलते अपनी मणि से 162 किलोमीटर दूर खंडवा जिले के सिंगा जी धाम में स्वतः ही अदश्य रूप से सिंगाजी दरबार में पहुंच जाते थे! और उन्हें कुछ ही क्षणों में चूड़ियां स्थित अपनी मणि पर वापस आ जाते थे ! जो स्वता ही एक चमत्कार है!
संत साधु बाबा के बारे में वृतांत है कि 18 वीं सदी में चूड़ियां की धरती पर साधु बाबा का जन्म हुआ जिनका बचपन का नाम चिधिया यादव था बाबा ने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया और कभी भी जीवित रहते शादी नहीं की लेकिन उनके भाई कि आज भी पांचवी पीढ़ी इस मणि पर रहकर सेवा दे रही हैउ| बुजुर्ग बताते हैं कि सन 1918 में जब चिचोली तहसील के चूड़ियां क्षेत्र में भीषण हैजा महामारी फैली तो सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए भीषण त्रासदी से परेशान ग्रामीण बाबा के पास पहुंचे । तो बाबा ने महामारी की रोकथाम के लिए चूड़ियां ग्राम में शक्ति की स्थापना कर हैजा जैसी भीषण महामारी से चूड़िया को मुक्त किया !आज भी यह देवी का स्थान चूड़ियां ग्राम की बीचो-बीच मंदिर के रूप में विद्यमान है जहां बाबा द्वारा शक्ति के रूप में स्थापित पत्थर मौजूद है! जिस पर लोग जल चढ़ाकर देवी की पूजा करते हैं! 

संत साधु बाबा अपने निवास स्थान पर जिस लकड़ी की ताकत पर बैठा करते थे वह आज भी उसी अवस्था में गांव वालों द्वारा सुरक्षित कर कर रखा गया है!

मान्यता है कि चूड़ियां में जिसने भी संत साधु बाबा के बनाए गए नियमों का उल्लंघन कर दूध दही मही बेचने की कोशिश की पुणे पत्ती के रूप में कभी अपने पशु बीमार होने मर जाने या फिर व्यापार में मुनाफा की बजाए घाटा होने तक की परेशानियों को झेलना पड़ा! आज भी इस गांव में कोई भी शख्स दूध दही मही का विक्रय नहीं करता!

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